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3. बपतिस्मा: एक अच्छे विवेक से परमेश्वर प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा

3. बपतिस्मा: एक अच्छे विवेक से परमेश्वर प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा

१ पतरस ३:२१

मॉन्ट्रियल, २० सितंबर, १९८१

बपतिस्मा लेने के बाद, कई मसीहियों के लिए एक बड़ी समस्या यह है कि वे जानते नहीं हैं कि आध्यात्मिक जीवन में वे क्या कर रहे हैं। इस कलीसिया में मैंने देखा है कि, कुछ मामलों की समस्याएँ कहीं और से उत्पन्न हुई हैं, अर्थात, उन्हें बपतिस्मा कहीं और दिया गया था बिना यह समझाए कि बपतिस्मा में वे क्या कर रहे हैं। शायद उन्होंने बपतिस्मा को, एक "समाज" में प्रवेश करने की औपचारिक रसम के रूप में मान लिया। परिणाम यह है कि वे कई वर्षों तक अपनी आध्यात्मिक समस्याओं को अपने साथ ढोते हैं। मैं अक्सर उन ईसाईयों को सलाह देता हूँ, जो आध्यात्मिक समस्याओं से बोझिल हैं और दुखी ईसाई जीवन जीते हैं। आज कलीसिया, ‘नाम में मात्र’ ईसाई, नकली ईसाई, आधे ईसाई, चौथाई ईसाईयों से भरा है, जो पराजित और दुखित ईसाई जीवन जीते हैं।

आज मैं सभी के लिए, बपतिस्मा के अर्थ को स्पष्ट करने के उद्देश्य से, शास्त्रों में से बपतिस्मा के बारे में कुछ बातों की व्याख्या करूंगा। मैं चार शीर्षकों के तहत ऐसा करना चाहूँगा।

पहला बिंदु: बपतिस्मा एक अच्छे विवेक से परमेश्वर के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा है

आइए हम १ पतरस ३:२१-२२ को संशोधित मानक संस्करण (आर.एस.वी - अंग्रेजी) से पढ़ें, भले ही यह पद् २१ का अच्छा अनुवाद न करे, जैसा कि मैं एक क्षण में समझाऊंगा:

१ पतरस ३:२१-२२ - और उसी पानी का दृष्‍टान्‍त भी, अर्थात बपतिस्मा, यीशु मसीह के जी उठने के द्वारा, अब तुम्हें बचाता है; ( उस से शरीर के मैल को दूर करने का अर्थ नहीं है, परन्तु शुद्ध विवेक से परमेश्वर के वश में हो जाने का अर्थ है )। वह स्वर्ग पर जा कर परमेश्वर के दाहिनी ओर बैठ गया; और स्वर्गदूत और अधिकारी और सामर्थी उसके आधीन किए गए हैं।

पद् २१, नूह के दिनों में बाढ़ की घटना को संदर्भित करता है, विशेष रूप से उस सन्दूक के संदर्भ में, जिसमें आठ लोगों को पानी से बचाया गया था (पद्. २०)। उस पीढ़ी में से केवल आठ लोग बाढ़ से बच गए, जिनका उद्धार सन्दूक के माध्यम से हुआ।

पतरस जो कह रहे हैं, उसे समझना महत्वपूर्ण है। आर.एस.वी का कहना है कि बपतिस्मा "एक अच्छे विवेक के लिए परमेश्वर से ‘मांग की प्रार्थना’" है। यह अनुवाद समस्याग्रस्त है, इसलिए यह सौभाग्य की बात है कि न्यू इंटरनेशनल संस्करण (एन.आई. वी- अंग्रेजी) में हमारा एक अच्छा और सटीक अनुवाद है जो कहता है कि बपतिस्मा "परमेश्वर के प्रति एक अच्छे विवेक की ‘प्रतिज्ञा’" है। एन.आई. वी १९८४ में "अच्छा विवेक" लिखा है और एन.आई. वी २०११ में "स्पष्ट विवेक" है, लेकिन दोनों यह कहते हुए सही हैं कि बपतिस्मा परमेश्वर की ओर एक अच्छे (या स्पष्ट) विवेक का संकल्प है।

पद् २१ में "मांग की प्रार्थना/अपील" (आर.एस.वी) या "प्रतिज्ञा" (एन.आई. वी) शब्द, यूनानी शब्द ‘एपेरोटेमा’ (Eperōtēma) के अनुवाद है, जिसका विस्तृत लिडेल-स्कॉट ग्रीक-इंग्लिश शब्दकोश में तीन परिभाषाएं दी गई हैं।

‘एपेरोटेमा’ का पहला अर्थ है, सवाल।

दूसरा अर्थ, एक सवाल का जवाब है, आमतौर पर एक सकारात्मक जवाब है, इसलिए संस्वीकृति या अनुमोदन की भावना है।

तीसरा अर्थ, लैटिन भाषा के, ‘स्टीपुलेशियो (stipulatio) के बराबर है, जिसका अर्थ है एक दायित्व, एक अनुबंध, एक प्रतिबद्धता या एक प्रतिज्ञा। यह माउलटन और मिलिगन के ‘ग्रीक न्यू टेस्टामेंट की शब्दावली ‘ से भी अनुकूल है।

गौरतलब है कि, लिडेल-स्कॉट ने ‘एपेरोटेमा’ को ‘अपील/प्रार्थना’ के रूप में परिभाषित कभी नहीं किया है। एक अपील, एक प्रश्न के समान नहीं है, क्योंकि दोनों काफी अलग हैं। यहाँ तक की "प्रश्न" का अर्थ ‘एपेरोटेमा’ के लिए दुर्लभ है, और ज़्यादातर एक सवाल का जवाब का अर्थ रखता है, और आगे ऐसे अर्थ रखता है, जैसे अनुबंध, प्रतिज्ञा, प्रतिबद्धता। जो लोग तकनीकी विवरण का अध्ययन करना चाहते हैं, वे ई.जी. सेल्विन द्वारा पहले पतरस पर उनके मानक विवरण में उनकी सावधानीपूर्वक चर्चा को देखें।

मैं भाषाई विवरण में नहीं जाऊँगा। यह कहना पर्याप्त है कि मुझे १ पतरस ३:२१ में "अपील" के अर्थ के लिए कोई भाषाविज्ञान संबंधी सबूत नहीं मिला है। अरंड्ट और गिंगरिच के ‘न्यू टेस्टामेंट और अन्य प्रारंभिक ईसाई साहित्य के ग्रीक-अंग्रेजी शब्दकोश में, ‘एपेरोटेमा’ की संभावित परिभाषा के रूप में "अपील" देते हैं, लेकिन इस अर्थ के लिए शून्य साक्ष्य प्रमाण देते हैं, जो उनके सामान्य तरीके के विपरीत है। वे इस अर्थ के लिए १ पतरस ३:२१ का ज़िक्र भी नहीं करते हैं। वे कोई सबूत पेश नहीं करते हैं, क्योंकि जैसा कि मैंने कहा है, ‘एपेरोटेमा’ के इस अर्थ के लिए कोई भाषाई सबूत नहीं है। इसलिए ‘एपेरोटेमा’ को एन.आई. वी ने सही ढंग से "प्रतिज्ञा" अनुवाद किया है। बपतिस्मा एक प्रतिज्ञा है, जो परमेश्वर के प्रति प्रतिबद्धता है।

आगे, १ पतरस ३:२१-२२ के यूनानी व्याकरण ‘genitive’ या ‘संबंध-सूचक’ को सही ढंग से ‘अच्छी विवेक की प्रतिज्ञा’ के रूप में अनुवादित किया गया है, न कि ‘अच्छे विवेक के लिए प्रतिज्ञा’। इसलिए बपतिस्मा, एक अच्छे विवेक से, परमेश्वर प्रति की गई प्रतिज्ञा है। यह पश्चाताप से आता है, और ऐसा सच्चा प्रतिज्ञा करने से आता है जो दुविधा या धोखे से मुक्त है। यदि आप बेईमान या आधे सच्चे हैं तो आपका विवेक अच्छा नहीं हो सकता है। बपतिस्मा, एक अच्छे विवेक, सच्चे दिल और सही मनोभाव से, परमेश्वर प्रति की गई प्रतिज्ञा है।

‘एपेरोटेमा’, विशेष रूप से दिलचस्प है क्योंकि यह प्रश्न और उसके प्रतिक्रिया का अर्थ है। बपतिस्मा में, आप एक प्रश्न के उत्तर में प्रतिज्ञा करते हैं। आपकी प्रतिक्रिया, आपकी प्रतिज्ञा या प्रतिबद्धता का निर्माण करती है। जब आप बपतिस्मा में "मैं सहमत हूँ" कहते हैं, तो आपकी यह प्रतिज्ञा और प्रतिबद्धता, आपके आगे रखे गए सवालों के जवाब में करते हैं। बपतिस्मा लेने वाले उम्मीदवार से कुछ विशिष्ट प्रश्न पूछना, शुरुआती कलीसिया का आचरण था, जिनका बपतिस्मा लेने से पहले, उन्हें सकारात्मक जवाब देना चाहिए था। चूँकि ‘एपेरोटेमा’ का अर्थ है सकारात्मक उत्तर देना, पतरस के इस शब्द के उपयोग के कारण स्पष्ट हो गए हैं।

बपतिस्मा एक संस्कार के रूप में

इस कारण से, बपतिस्मा को कलीसिया का एक संस्कार बुलाया गया था, और अभी भी बुलाया जाता है। कलीसिया में हमारे दो संस्कार हैं: बपतिस्मा का संस्कार और भोज का संस्कार, जिसे अंग्रेजी में ‘यूकरिस्ट’ या ‘लॉर्ड्स सपर’ के नाम से भी जाना जाता है। अंग्रेजी शब्द ‘सक्रामेंट’ यानी संस्कार, लैटिन ‘सक्रामेंटम’ का लिप्यंतरण है, और इसे लैटिन शब्दकोश से सत्यापित किया जा सकता है। संस्कार का मूल अर्थ, एक शपथ, एक दायित्व, एक प्रतिज्ञा है। कानूनी शब्दावली में, यह एक प्रतिज्ञा है। यह एक मुकदमे से पहले, दो पक्षों द्वारा जमा किए गए पैसे का भी उल्लेख कर सकता है, जिन पैसों को अमानत की हैसियत से कानूनी मामले की शुरुआत से पहले भरे जाते हैं ।

लेकिन इस शब्द ‘सक्रामेंटम’ में एक विशिष्ट अर्थ था: वफादारी की एक सैन्य शपथ। रोम के सैनिक अपने देश और अपने सम्राट के प्रति निष्ठा की एक सैन्य शपथ लेते थे, जिसे ‘सक्रामेंटम’ कहते थे। वे कभी, हाथ उठाकर ऐसा करते हैं, जैसा कि आज भी देखा जाता है जब राष्ट्रपति या एक सामान्य नागरिक क्यों ना हो , कानून की अदालत में शपथ लेता है, यह दर्शाते हुए कि वह व्यक्ति, स्पष्ट विवेक के साथ सच्चाई से आगे बोलेगा। वे कभी घोषणा करते हैं, "मैं सत्य, संपूर्ण सत्य और सत्य के अलावा कुछ भी नहीं बोलूंगा।"

अन्य स्थितियों में, निष्ठा की शपथ दिल पर रखा हुआ बंद मुट्ठी के साथ किया जाता है, फिर से एक अच्छा विवेक और शुद्ध हृदय व्यक्त करते हुए। या इसे एक खींची हुई तलवार के साथ किया जा सकता है: सैनिक अपनी तलवारें और अपना जीवन, अपने राष्ट्र और अपने सम्राट के लिए समर्पित करते हैं।

नाजी जर्मनी ने ‘सक्रामेंटम’ का बहुत उपयोग किया, यह माँगते हुए कि प्रत्येक सैनिक निष्ठा की सैन्य शपथ लें, जैसा कि नाजियों पर वृत्तचित्र में देखे जाते हैं । सैनिकों को सीधे खड़े होकर, अपनी बाहें बढ़ाए, ‘ich schwöre’ या ‘इश श्वोरह’ को घोषित करना था, कि "मैं फ़ुहरर (नेता) के प्रति, देश के खातिर और देश की आवश्यकता के खातिर कसम खाता हूँ"।

बपतिस्मा को "संस्कार" क्यों बुलाया जाता है? कारण यह है…बपतिस्मा की प्रतिज्ञा, परमेश्वर प्रति हमारी निष्ठा की शपथ है, जिस से हम उन्हें हमारे जीवन के राजा के रूप स्वीकार करते हैं। बपतिस्मा में, हम उन्हें सदा के लिए अपनी वफादारी देते हैं। यह एक अच्छे विवेक से परमेश्वर प्रति, की गई प्रतिज्ञा है। यह महत्वपूर्ण है कि विवेक अच्छा हो। आपको, पुराने जीवन के प्रति अपनी निष्ठा को तोडना होगा, क्योंकि आप एक ही समय में परमेश्वर की सेवा और दुनिया की सेवा कैसे कर सकते हैं? आप परमेश्वर और धन की सेवा कैसे कर सकते हैं? यदि परमेश्वर के प्रति, बपतिस्मा में निष्ठा की शपथ एक शुद्ध हृदय और अच्छी अंतरात्मा से नहीं बनाई गई, तो आपका हृदय विभाजित हो जाएगा।

मैंने कुछ समय पहले बताया था कि प्रभु भोज भी एक संस्कार है। लगभग ११२ ई. में, रोम के एक अध्यक्ष, प्लिनी (छोटे), ने सम्राट ट्राजन को एक पत्र लिखकर उन्हें सूचित किया कि जिन कुछ ईसाईयों को उन्होंने गिरफ्तार किया था, उनसे पूछताछ करने पर उनसे यह जानकारी मिली, कि उनके प्रभु भोज के अवसर पर ईसाई, परमेश्वर प्रति, उन्हें प्रेम करने की और एक पवित्र जीवन जीने की शपत को दोहराते हैं। वे, एक दूसरे से किया हुआ वचन का भी नवीकरण करते हैं, प्रतिज्ञा करते हुए की वे एक-दूसरे से प्रेम करेंगे। इसलिए यूकारिस्ट या प्रभु भोज में भी परमेश्वर के प्रति प्रतिबद्धता का तत्व शामिल है। जब भी हम प्रभु भोज लेते हैं, हम अपनी प्रतिबद्धता की नवीकरण कर रहे हैं। हम आज इस पहलू को भूल गए हैं, और यही कारण है कि हम नहीं जानते हैं कि भोज एक संस्कार है।

विश्वास में आधारित, एक अच्छे विवेक से स्वीकारोक्ति

प्रारंभिक कलीसिये ने बपतिस्मा को बहुत महत्व दिया, और हमें भी इसके अत्यंत महत्व को समझना चाहिए। बपतिस्मा कोई ऐसी बात नहीं है जिसे हम चाहे तो ले सकते हैं या छोड़ सकते हैं। कई लोग इस तरह से बपतिस्मा के बारे में सोचते हैं, क्योंकि वे बपतिस्मा पर पवित्र शास्त्रीय शिक्षण को नहीं समझते हैं, और न ही बपतिस्मा के महत्व पर शुरुआती कलीसिये के गंभीर दृष्टिकोण को। पतरस के इन शब्दों को फिर से देखें: "बपतिस्मा अब आपको बचाता है" (१ पतरस ३:२१)। ये महत्वपूर्ण शब्द हैं। हम पानी और आत्मा से पैदा हुए हैं (यूहन्ना ३:५)। सिर्फ पानी से ही नहीं बल्कि आत्मा से भी पैदा होते हैं, और न सिर्फ आत्मा से पैदा होते हैं, बल्कि पानी से भी होते हैं, क्योंकि प्रतिज्ञा पानी में की जाती है ।

धर्मशास्त्री आज, बाइबल की शिक्षाओं और शुरुआती कलीसिये में बपतिस्मा का मुख्यत्व देख रहे हैं। मेरा एक मित्र, रॉबर्ट बैंक, जो सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में मेककुआरी विश्वविद्यालय में पढ़ाता है, ने ‘पॉल की आइडिया ऑफ़ कम्युनिटी’ (१९७९) नामक एक पुस्तक लिखी है जो निम्नलिखित कहती है:

पौलुस का, बपतिस्मा के साथ विश्वास को जोड़ने से पता चलता है कि बपतिस्मा के माध्यम से ही था कि एक व्यक्ति वास्तव में परमेश्वर के प्रति खुद को प्रतिबद्ध करता है। (P. ८२)

बैंक का कथन, कि यह बपतिस्मा के माध्यम से था, जिस से एक व्यक्ति खुद को परमेश्वर प्रति अर्पण करता है, काफी सटीक और शास्त्र शिक्षण के करीब है। अपने मित्र की पुस्तक के हवाले देते हुए, मेरा मतलब यह नहीं है कि इसमें वह जो कुछ कहता है, उस से मैं पूरी तरह सहमत हूँ। लेकिन इस विषय पर, वह निश्चित रूप से इंजील के अनुकूल है।

रोमियों १०:१० में, पौलुस ने दो महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया है, जिनमें से दोनों, उद्धार के लिए महत्वपूर्ण हैं और बताते हैं कि पतरस क्यों कहते है कि बपतिस्मा हमें बचाता है:

रोमियों १०:१० क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है।

यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य हैं: वह अपने हृदय से विश्वास करता है और इसलिए धार्मिक बन जाता है। वह अपने होठों से कबूल करता है और इसलिए बचाया जाता है। लेकिन उसने यह कब कबूल किया? आरंभिक कलीसिया में यह, बपतिस्मा पर उस व्यक्ति के सामने रखे गए एक प्रश्न के उत्तर में करेगा, जिसका वह उत्तर देता है, "मैं प्रभु के रूप में यीशु को अंगीकार करता हूँ।" मुँह से वह कबूल करता है, और इस संस्वीकृति द्वारा वह बचाया जाता है। दिल में विश्वास होना चाहिए, लेकिन स्वीकारोक्ति भी होनी चाहिए। यह कोई साधारण स्वीकारोक्ति नहीं है लेकिन बपतिस्मा पर एक प्रतिज्ञा है, जो परमेश्वर और यीशु मसीह के प्रति निष्ठा की सैन्य शपथ है।

अपने आप में बपतिस्मा हमें नहीं बचाता है, इस बात को हमें स्पष्ट समझ लेना चाहिए। विश्वास और स्वीकारोक्ति एक अच्छी अंतरात्मा से होनी चाहिए जो हृदय से आता है। एक उचित स्वीकारोक्ति सिर्फ मूह ज़बानी नहीं है, क्योंकि एक अच्छा विवेक भी ज़रूर होना चाहिए जो विश्वास पर आधारित है।

बपतिस्मा में परमेश्वर प्रति प्रतिज्ञा, कानूनी रूप से बाध्यकारी है

आप पूछ सकते हैं, "क्या मैंने अपने बपतिस्मे से पहले ही यीशु की स्वीकारोक्ति नहीं किया है?" निश्चित आपने किया, लेकिन यह निष्ठा की शपथ लेने के समान नहीं है। जैसे रोम का सैनिक जिसने निष्ठा की शपत ली थी, क्या वह शपथ लेने से पहले ही अपने देश और अपने सम्राट के प्रति वफ़ादार नहीं था? निस्संदेह वह था। लेकिन यह औपचारिक शपथ लेने से ही, प्रतिबद्धता एक कानूनी पहलू लेता है और एक बाध्यकारी प्रतिज्ञा बन जाता है। वह खुद को शपथ के तहत रखता है, यानी कि ‘सक्रामेंटम’ के तहत। उस बिंदु तक, वह अपने सम्राट और अपने देश से प्यार करता था, लेकिन उसने कोई शपथ या प्रतिज्ञा या प्रतिबद्धता नहीं की थी।

बपतिस्मा में, ईसाई अपने परमेश्वर और राजा के प्रति निष्ठा की शपथ लेता है। मुझे आशा है कि आप इसे स्पष्ट रूप से समझ लेंगे। यह दो व्यक्तियों के मामले के अनुरूप है जो विवाह से पहले एक-दूसरे से प्यार करते हैं। लेकिन कानूनी तौर पर दोनों के बीच कोई प्रतिबद्धता नहीं है, जब तक कि वे अपनी शादी की कसमें या प्रतिज्ञा की घोषणा नहीं करते। बेशक वे इससे पहले एक-दूसरे से प्यार करते थे, और उनमें किसी तरह की निष्ठा तो थी, लेकिन यह समर्पण केवल उनके विवाह में कानूनी हो जाता है।

इसी तरह, बपतिस्मा पर आपकी प्रतिबद्धता परमेश्वर की दृष्टि में कानूनी हो जाती है, हमेशा के लिए स्वर्गों में स्थापित होते हुए। आपने अपनी निष्ठा की कसम खाई है, परमेस्वर को अपना राजा मानकर पूरी तरह अपने आप को उनके हाथ अर्पित करते हुए।

यह पहली बात है जिसे मैं स्पष्ट करना चाहूँगा ताकि आप समझ सकें कि आप बपतिस्मा में क्या कर रहे हैं। जो भी इस बात को स्पष्ट समझ नहीं रहा है, उसे इस समय के लिए बपतिस्मा से पीछे हटना चाहिए।

तो बपतिस्मा का पहला अर्थ यह है कि यह एक प्रतिज्ञा है। यह उतना ही बाध्यकारी है जितना शादी की प्रतिज्ञा, उतना ही बाध्यकारी जितना की सैन्य शपथ। एक सैनिक जो अपनी शपथ तोड़ता है, वह यह समझेगा और दंड स्वीकार करेगा जो उसका सम्राट और उसका देश उसे, निष्ठा भंग करने के कारण देंगे, एक ऐसा कार्य किया है जो उसे उसके देश और उसके लोगों की दृष्टि में देशद्रोही बनाता है।

सैनिक अपनी ही इच्‍छा से शपथ लेता है, न कि इसलिए कि वह मजबूर है। लेकिन जब एक बार वह शपथ लेता है, तो वह उसे मृत्यु तक निभाएगा, जैसे कि शादी में दंपती कहते हैं, "जब तक मृत्यु हमें अलग कर दें।"

दूसरा बिंदु: बपतिस्मा में हम मसीह के साथ जुड़े जाते हैं

बपतिस्मा के अर्थ पर दूसरी बात यह है कि हम बपतिस्मा में मसीह के साथ जुड़े जाते हैं:

रोमी ६:४ सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।

अब हम इस पद् के पहले भाग को देखते हैं, और फिर थोड़ी देर बाद दूसरे भाग पर विचार करते हैं। पहला भाग कहता है कि हमें बपतिस्मा द्वारा मसीह के साथ दफ़नाया गया था। ध्यान दें कि पौलुस "मसीह के साथ" कहते हैं और "मसीह के लिए" नहीं। एक पुराने उपदेश में, "वह जो मेरे साथ नहीं है, मेरे खिलाफ है" शब्दों पर मैंने समझाया कि उन दो अवस्ताओं के बीच अंतर बहुत है, "मसीह के लिए" बनाम "मसीह के साथ"।

कई “मसीह के लिए” हैं, लेकिन कुछ लोग ही “मसीह के साथ” हैं। पहले का अर्थ है उसे जोश दिलाना। जैसे आप आपके फुटबॉल टीम की जोश बढ़ाने के लिए कहते हैं: "और बड़ो! आप जीतने जा रहे हैं!" यह “उनके लिए" के रूप में वर्णित किया जा सकता है। या आप अखाड़े में दो मुक्केबाजों को देखते हैं, और आप उनमें से एक के पक्ष में हैं और उसे जोश दिलाते हैं: “चलो! उसे ठोक दो! उसे दिखाओ कि तुम क्या कर सकते हो!” आप उसके लिए हैं, लेकिन उसके साथ नहीं। यदि आप उसके साथ हैं, तो आप रिंग में होंगे, घूंसे से बचते हुए, अपने जीवन के लिए लड़ेंगे। आप "उसके साथ" लड़ रहे हैं, कंधे से कंधा मिलाकर। यह, फुटबॉल स्टेडियम की प्रतियोगिता में भाग लेने वाली दो टीमों के मामले से भिन्न है, जिसमें भीड़ उनकी पसंदीदा टीमों की जोश बढ़ाने की कोशिश करती है, और स्टेडियम की सीटों की आश्रय और सुरक्षा में ऐसा करते हैं, जहाँ कोई भी आपको ठोक न सके ।

कई लोग मसीह के लिए हैं, लेकिन क्या वे उनके साथ हैं? क्या आप केवल कहते हैं, “इस भ्रष्ट दुनिया में, हमें ईसाइत्व और नैतिकता की आवश्यकता है। थोड़ा सा धर्म आपके लिए अच्छा है, लेकिन मुझे इसमें शामिल न करें!"

कई माता-पिता अपने बच्चों में अच्छी नैतिकता पैदा करने के लिए संडे स्कूल (रविवार की शाला) भेजकर कहते हैं, "धर्म बच्चों के लिए अच्छा है।" लेकिन जब उनसे पूछा जाए कि वे खुद कलीसिया क्यों नहीं जाते हैं, तो वे कहते हैं, "कलीसिया बच्चों के लिए है, मेरे लिए नहीं।"

लिवरपूल के हमारे कलीसिये में एक बस था और उसमें हम बच्चों को कलीसिया ले आते थे । माता-पिता कलीसिया नहीं आते थे, लेकिन अपने बच्चों को कलीसिया भेजने में खुश थे। वे कलीसिये ‘के लिए’ हैं और सोचते हैं कि ईसाई धर्म अच्छा है। और खुद का क्या? कलीसिया दूसरों के लिए अच्छा है, लेकिन उनके लिए नहीं। वे मसीह ‘के लिए’ हैं।

लेकिन मसीह ‘के साथ’ होने का मतलब, मसीह के साथ युद्ध के मैदान में होना है, न केवल उन्हें जोश दिलाना बल्कि उनके साथ खड़ा होना, जीत के लिए उनके साथ लड़ना और यह करते करते, घायल हो जाना। लेकिन दर्शक घायल नहीं होते हैं, बाहेक जब एक बेसबॉल गेंद, अकस्मात स्टैंड से उड़ान भरता है और अपना सैंडविच खाने वाला व्यक्ति को मारता है। यह एक आकस्मिक घटना से अधिक कुछ नहीं है, जो ऐसे व्यक्ति के साथ हुआ है जो मैदान पर नहीं है।

लेकिन पौलुस कुछ ऐसा बोलते हैं, जिसे हम मसीह ‘के साथ’ करते हैं: क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे। (रोमी :) बपतिस्मा में, हम अपनी वचनबद्धता के द्वारा मसीह के साथ गाड़े जाते हैं। हम केवल ऐसे दर्शक नहीं हैं जो मसीह की जोश बढ़ाने आए हैं, बल्कि उनके साथ और आखिरकार परमेश्वर के साथ, एकजुट होते हुए, स्वयं को मसीह के साथ होते हुए खुले आम ऐलान करते हैं।

मसीह के साथ मरना और उसके साथ गाड़े जाना

आपके ईसाई बन जाने पर, आपके दोस्त आपका मज़ाक उड़ा सकते हैं: “आपके साथ क्या हुआ कि आप धार्मिक हो रहे हैं? क्या आपका विवेक आपको परेशान कर रहा है? हो सकता है कि कोई मनोवैज्ञानिक आपको ठीक कर दें। लेकिन मनोवैज्ञानिक को देखने के बजाय, आप पुरा धार्मिक हो रहे हैं!” जब उनकी मज़ाक सुनते हैं, तो आप हतोत्साहित महसूस कर सकते हैं और आपका विश्वास थोड़ा हिल सकता है। लेकिन अगर आप केवल मसीह की जोश बढ़ाने वाले हैं, तो किसी की नज़र आप पर नहीं पड़ेगी । लेकिन अब, जब आप मसीह के साथ उनके पक्ष खड़े हैं, उनके साथ मरने के लिए और उनके साथ दफन होने के लिए, तो स्थिति बदल गई है। आप, उपहास या कम से कम, पहेली का एक विषय बन गए हैं।

मैं अपने समय में एक सांसारिक व्यक्ति था। मेरे कई दोस्त भी सांसारिक थे, और सुंदर लड़कियों के साथ डांस फ्लोर पर नाचते हुए बहुत समय बिताते थे। इसलिए जब मैं ईसाई बन गया, तो उन्होंने यह सोचकर अपना सिर खुजलाया: “उसके साथ क्या हुआ? वह हमें कैसे छोड़ गया? वह ईसाई क्यों बन गया है? " उनमें से कोई भी, वास्तव में मुझ पर नहीं हँसा। मुझे लगता है कि वे विनोदपूर्ण होने से ज़्यादा चौंक गए थे कि मैं ईसाई बन गया था। वे मुझे अजीब तरह देखते, यह सोचते हुए कि मेरे साथ क्या हुआ था।

मेरे दोस्त, एक कलीसिये के अंदर मेरी कल्पना तक नहीं कर सकते थे, न की यह कि एरिक चांग कभी ईसाई बन जाएगा। आज इसके विपरीत है: आप मुझे कलीसिया में कल्पना कर सकते हैं, लेकिन आपके लिए उस सांसारिक व्यक्ति की कल्पना करना कठिन हो सकता है जो मैं था। आप मुझे एक पादरी, एक "धार्मिक" व्यक्ति के रूप में देखते हैं, हालांकि मैं एक धार्मिक लबादा या कॉलर या किसी भी प्रकार का धार्मिक वस्त्र नहीं पहनता और पहनना पसंद भी नहीं करता। मेरा परिवर्तन किसी "धर्म" को नहीं हुआ।

जब मैं ईसाई बन गया, तो मेरे एक करीब दोस्त के साथ मेरी लम्बी बातचीत हुई। लड़कियों के साथ बहुत लोकप्रिय, इस सुंदर साथी ने मुझ से पूछा, “तुम्हें क्या हुआ? तुम ईसाई क्यों बने?” वह सोफे पर फिसल कर अपने पैर मोडें बैठा, यह पता लगाने की कोशिश कर रहा था कि मैं ईसाई क्यों बन गया। वह गहरे सोच में था और मुझ से सवाल पे सवाल किए जा रहा था, जिनका मैं जवाब नहीं दे सकता था क्योंकि मैं हाल ही ईसाई बना था। वह कहता रहा, “तुम ईसाई क्यों बने? मुझे समझ नहीं आती! "

खैर, दो या तीन महीने बाद, वह खुद ईसाई बन गया! वह आखिर समझ गया। इस बार, यह अपनी बारी थी, उसके दोस्तों द्वारा पूछताछ के लिए: "तुम्हें क्या हुआ?" पहले वह "मसीह के लिए" के स्तर पर भी नहीं था, लेकिन कुछ संघर्ष के बाद वह धीरे-धीरे "मसीह के लिए" बन गया। फिर वह दिन आया, जब वह “मसीह के साथ” खड़ा हुआ। मेरे इस प्यारे दोस्त, जिससे मैं बहुत प्यार करता हूँ, को मसीह के साथ अपना पक्ष लेते हुए देखकर कितनी खुशी हुई!

बपतिस्मा में मसीह के साथ हमारी मृत्यु और दफ़न, उनके साथ एकजुट होने की दिशा में हमारा पहला कदम है, जैसा कि पौलुस स्पष्ट करते हैं: “क्योंकि यदि हम उसकी मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे। " (रोमी ६:५)

रोमियों के पुस्तक में, अध्याय ६, बपतिस्मा के बारे में है। जी उठने में मसीह के साथ एकजुट होने का एकमात्र तरीका, उनकी मृत्यु में उनके साथ एकजुट होना है। पौलुस इस बात को बहुत स्पष्ट करते हैं। "उसके साथ जुट" का वाक्यांश पद् ५ में, दो बार आता है, जिसे हमने अभी देखा। यह सिर्फ ‘उनके लिए’ नहीं है, बल्कि ‘उनके साथ’ है।

हम अपनी मर्ज़ी से मसीह के साथ मरते हैं। किसी ने हमें मजबूर नहीं किया, और न ही किसी कारण से हम मजबूर हुए। मैं ईसाई नहीं बना क्योंकि मैं मरने से डरता था। मैं मरने से कभी नहीं डरता था। मौत का डर कभी मेरे बनावट का हिस्सा नहीं था। मुझे नहीं पता कि कुछ लोग, मौत से इतना बहुत क्यों डरते हैं। कोई भी, मुझे मृत्यु या भूतों की बात के साथ, परमेश्वर के राज्य में जाने के लिए डरा नहीं सकता है। मुझे मौत या भूत से कभी डर नहीं लगा। मैं केवल इसलिए ईसाई बन गया क्योंकि मुझे सच्चाई का पता चल गया था, और क्योंकि मैंने अपनी स्वतंत्र इच्छा से, पाप की दासता से मुक्त होने के लिए, सत्य के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की। जब हम ऐसा करते हैं, परमेश्वर हमें, मसीह में नए जीवन के लिए, जी उठाऐंगे।

मसीह के साथ संयुक्त: आप के अंदर परमेश्वर का दिया हुआ पुनरुत्थान जीवन

मैं मसीह के साथ एकजुट होने के बारे में एक और बात पर ज़ोर देना चाहूँगा। केवल तभी, जब आप "मसीह के साथ" एकजुट होते हैं - केवल उन्हें जोश दिलाने या "उनके लिए" होने से नहीं – कि मसीह में बहता परमेश्वर का जीवन, आप में बहने लगता है। यदि आपने यह अनुभव किया है, तो आप यूहन्ना १५: ४ में यीशु के शब्दों को समझेंगे, "तुम मुझमें बने रहो, और मैं तुममें"। परमेश्वर का जीवन जो मसीह में है, आप में बहने लगेगा, और आप बहुत फल देंगे।

यूहन्ना १५: ४ को सैद्धांतिक रूप से, बिना अनुभव किए पढ़ना, संभव है। क्या आपने कभी परमेश्वर के जीवन को आप में बहते हुए अनुभव किया है? यह चुपचाप और शांत रूप से बह सकता है, फिर भी यह आपको शक्तिशाली रूप से परिवर्तित करता है, और दूसरों को आपके द्वारा बदल देता है। जब मैं अपने उस सांसारिक मित्र के साथ बात कर रहा था, तो मुझे बाइबल के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी, फिर भी मेरे लड़खड़ाते हुए शब्द ने उससे बात की। इस नए जीवन का कुछ, मेरे द्वारा बहने लगा और उसके पास जा पहुँचा। और यह सांसारिक आदमी जिसने नाच-रंग में ज़्यादा समय बिताया था, वह परिवर्तित हो गया। किसी तरह, मसीह में मौजूद परमेश्वर का जीवन, मेरे द्वारा उसके पास बह गया। मुझे नहीं पता कि मेरे जवाब उसे कैसे छू गए क्योंकि ईसायित्व में नए होने के नाते, मैं उसके सवालों का जवाब तक नहीं दे सका। लेकिन, सिर्फ यह मायने रखा, कि परमेश्वर का जीवन मेरे द्वारा बह रहा था। अंत में, न केवल वह, बल्कि मेरे कई अन्य दोस्त भी एक-एक करके परिवर्तित हो गए।

मेरा एक और प्रिय मित्र विश्वविद्यालय के पथ को छोड़ने के लिए तैयार था। वह साम्यवादी के अधीन, ईसाई बन गया और उसे विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया गया। उसने इस बलिदान को स्वीकार कर लिया क्योंकि उसने अधिक मूल्य के कुछ कार्य का अनुभव किया था। नए जीवन की इस तरह की शक्ति थी उसमें, जो परमेश्वर की अंदरूनी पवित्र आत्मा से आती है।

परमेश्वर, पवित्र आत्मा को, एक बयाना के रूप में, एक बंधक के रूप में, एक पेशगी भुगतान के रूप में हमें देते हैं। (हम अगले अध्याय में इस पर चर्चा करेंगे।) जब हम बपतिस्मा में परमेश्वर प्रति अपनी प्रतिज्ञा करते हैं, तो वे हमें अपना जीवन और अपनी आत्मा देकर हमसे प्रतिज्ञा करेंगे। यह कोई दर्शनशास्र की चर्चा नहीं है, बल्कि कुछ ऐसा है, जिसका आप अनुभव करते हैं। यह दर्शन की नहीं, बल्कि जीवन की वास्तविकताओं की बात है। अगर मुझे इस नए जीवन का अनुभव नहीं होता, तो मैं सिर्फ दार्शनिक बातें करता, और मुझे इसमें कोई दिलचस्पी नहीं है।

कुछ ईसाई, परमेश्वर के लिए अपना जीवन दांव पर लगाने को तैयार हैं। एक प्रारंभिक शहीद, पॉलीकार्प, जब वे लगभग ९० वर्ष के थे, कहने में सक्षम थे, "मैंने परमेश्वर को जाना है और इन सभी ८६ वर्षों में उनकी दया का अनुभव किया है, इसलिए मैं उन्हें इंकार या उनकी निन्दा कैसे कर सकता हूँ?" रोम का अधिकारी, एक बूढ़े आदमी को प्राणदंड देना नहीं चाहता था, इसलिए उसने पॉलीकार्प से मसीह की इंकार करवाने की कोशिश की। लेकिन पॉलीकार्प नहीं माने और मारे गए।

तीसरा बिंदु: बपतिस्मा में, पवित्र आत्मा हमें मसीह के शरीर में शामिल करता है

हमारा पहला बिंदु यह है कि बपतिस्मा एक प्रतिज्ञा है, जहाँ हम स्वयं को परमेश्वर के हाथ समर्पण करते हैं। दूसरा बिंदु यह है कि बपतिस्मा में हम मसीह के साथ एकजुट होते हैं। तीसरा बिंदु यह है कि बपतिस्मा में हम मसीह के शरीर में शामिल होते हैं।

कलीसिया की सदस्यता आपको मसीह के शरीर का सदस्य नहीं बनाती है। नया नियम का कलीसिया, बपतिस्मा प्राप्त ईसाइयों का धार्मिक समाज नहीं है, जिनमें कई, वास्तव में मसीह के शरीर के सदस्य नहीं हैं और इसलिए वे बाइबल के अर्थ में ईसाई नहीं हैं।

मसीह का शरीर एक आध्यात्मिक वास्तविकता है, न कि कोई संगठन या संस्था। मसीह के शरीर का सदस्य बनने का एकमात्र तरीका है, आपके जीवन में पवित्र आत्मा के काम द्वारा:

१ कुरिन्थियों १२ : १३ क्योंकि हम सब ने क्या यहूदी हो, क्या युनानी, क्या दास, क्या स्‍वतंत्र एक ही आत्मा के द्वारा एक देह होने के लिये बपतिस्मा लिया, और हम सब को एक ही आत्मा पिलाया गया।

पौलुस का कहना है कि आत्मा हमें मसीह के शरीर भीतर बपतिस्मा देता है। मैं इस पद् के तकनीकी और टीका संबंधी विवरणों में नहीं जाऊँगा। यह कहना पर्याप्त होगा कि इस पद् में पौलुस का "बपतिस्मा" शब्द का उपयोग, असामान्य है। अगर वे सिर्फ यह कहना चाहते हैं कि हमें मसीह के शरीर भीतर रखा गया है, तो दरअसल "बपतिस्मा" शब्द का यह अर्थ नहीं है, क्योंकि इसका अर्थ केवल डुबाना या तल्लीन करना है। यदि पौलुस केवल यह कहना चाहते हैं कि आत्मा ने हमें मसीह के शरीर में डाल दिया, तो वे "रखा" या "डाला" के लिए यूनानी शब्द का उपयोग कर सकते थे या यह कह सकते थे कि हम मसीह के शरीर में "कलम बांधे" हैं। "बपतिस्मा" शब्द का उनका उपयोग जिज्ञासु है क्योंकि आम तौर पर, इसका मतलब होता है, किसी तरल पदार्थ में कुछ डालना।

तकनीकी विवरण के लिए, टी. सी. कोनंट का ‘बाप्टिज़ें का अर्थ और उपयोग: भाषाविज्ञान-संबंधी और ऐतिहासिक रूप से जांच”, पुस्तक देखें। बाप्टिज़ें यूनानी शब्द है, जिससे बपतिस्मा का अंग्रेजी शब्द,बैप्टाइस निकाला जाता है और इसका आम तौर पर मतलब होता है, किसी चीज़ को द्रव में डालना, ठोस पदार्थ में नहीं। इसलिए यह अजीब है कि पौलुस बाप्टिज़ें का प्रयोग, यह कहने के लिए करते हैं, जहाँ किसी को, शरीर में रखा जा रहा है।

शरीर के भीतर तलवार चलाना, जहाँ पीड़ित व्यक्ति के खून में तलवार डुबोना के विचार के साथ, बाप्टिज़ें का इस्तेमाल लाक्षणिक रूप में कभी-कभी किया जाता है। पौलुस के मन में यह अर्थ नहीं हो सकता है। वे कलीसिया, या मसीह के शरीर में तलवार चलाने की बात नहीं कर सकते हैं। यह संदर्भ के लायक नहीं है क्योंकि यह एक ऐसा कार्य है जो शरीर के लिए सकारात्मक होने के बजाय विनाशकारी है। कभी-कभी ‘बाप्टिज़ें बाढ़ जैसी आपदा की व्याकुलता को व्यक्त करता है, लेकिन यह अर्थ भी यहाँ लागू नहीं होता है।

पौलुस के लिए "बपतिस्मा" का उपयोग करने का सिर्फ एक कारण बचा है, और वह है 'पानी की बपतिस्मा' के संदर्भ में। एकदम सीधी बात है। जिस तरह हमें बपतिस्मा के पानी में रखा जाता है, उसी तरह पवित्र आत्मा हमें रखते हैं - हमें बपतिस्मा देते हैं, मसीह के शरीर में। यह बपतिस्मा के समय होता है, जब साथ में हमारी तरफ से प्रतिबद्धता होती है और परमेश्वर के तरफ से उनकी सामर्थ। न केवल हमें पानी द्वारा बपतिस्मा दिया जाता हैं, बल्कि मसीह के शरीर भीतर, हमें पवित्र आत्मा द्वारा, बपतिस्मा दिया जाता है।

किस बिंदु पर हम मसीह के शरीर के सदस्य बनते हैं? किस बिंदु पर आत्मा हमें मसीह के शरीर में डालता है, जिससे हम शरीर के सदस्य बन जाते हैं, जो नए नियम का कलीसिया है? पौलुस संकेत करते हैं कि ये बपतिस्मा के समय होते हैं, जिस अवसर पर हम एक अच्छे विवेक से परमेश्वर प्रति अपनी प्रतिज्ञा करते हैं।

चौथा बिंदु: पुराने जीवन प्रति मरना, नए जीवन में प्रवेश करना

हम अपने चौथे और अंतिम बिंदु पर आते हैं: नए नियम में, बपतिस्मा मृत्यु का प्रतीक है, लेकिन यह कभी-कभी मृत्यु के मूल अर्थ से अधिक जाकर शहादत का प्रतीक बन जाता है। हम इसे यीशु की शिक्षाओं में पाते हैं, उदाहरण के लिए मरकुस १०: ३८ -३९ ("जिस बपतिस्मा से मुझे बपतिस्मा दिया गया है") और लूका १२:५० ("मुझे तो एक बपतिस्मा लेना है")। संदर्भ से हम जानते हैं कि यीशु, जिस बपतिस्मे के दौर से गुजरने की बात कर रहे हैं, उस मृत्यु का ज़िक्र कर रहे हैं, जिसे उन्हें मरना होगा।

मौत पर ज़ोर क्यों? मृत्यु कुछ लोगों के लिए एक दूषित विषय है, तो हम इसके बारे में बात क्यों करते हैं? इसका कारण एक प्रसिद्ध पद् में दिया गया है:

२ कोरिंथियों ५:१७ - सो यदि कोई मसीह में है तो वह नई सृष्‍टि है: पुरानी बातें बीत गई हैं; देखो, वे सब नई हो गईं।

मौत पर ज़ोर क्यों? क्योंकि, यदि पुरानी बीत नहीं जाएगी, तो नया नहीं आ सकता है। कई ईसाइयों के साथ यही समस्या है। रोमियों ६ का पुनर्जीवित जीवन उनके अनुभव में वास्तविक नहीं है क्योंकि वे अभी भी अपने पुराने जीवन में ही हैं। वे एक अच्छे विवेक से प्रतिज्ञा किए बिना, बपतिस्मा में प्रवेश करते हैं। इसका एक सामान्य वजह है बपतिस्मा के अर्थ पर उचित शिक्षण की कमी।

मैं आपसे यह समझने की बिनती करता हूँ, खासकर यदि आप एक ईसाई हैं, कि यदि पुराना अभी भी आपके जीवन में है, यदि आप अभी भी अपने पुराने पापों और पुराने विचार करने के तरीकों को कसकर पकड़े हैं, तो नया नहीं आ सकता है।

ईसाई बनते वक्त यदि मैं अपनी पुरानी सोच पर अडिग रहता, तो मुझे ईसाई जीवन की पूर्णता का अनुभव नहीं होता। दुनिया में खुद को महान बनाने के लक्ष्य से, अगर मैं अपनी सैन्य महत्वाकांक्षाओं को पकड़े रखता, और अपनी खुद की सेना नेतृत्व करता, तो मैं एक सच्चा ईसाई नहीं बन सकता था। पहले मुझे अपना पुराना जीने का तरीका और अपनी स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं को त्यागना पड़ा। महत्वाकांक्षाएं अपने आप में गलत नहीं हैं, क्योंकि स्वार्थी महत्वाकांक्षाएं के विपरीत आध्यात्मिक महत्वाकांक्षाएं भी हैं।

मैं दो महीने तक अपनी महत्वाकांक्षाओं पर तड़पा। मैं उनको छोड़ना नहीं चाहता था क्योंकि वे मेरे लिए बहुत मायने रखते थे। सालों तक मैंने उन महत्वाकांक्षाओं के लिए जिया, खुद को अनुशासित किया और व्यायाम तालिम के लिए सुबह जल्दी उठा। मेरा आज, शरीर के हड्डियां दिखते स्थिति के विपरीत, उन दिनों मैं बहुत मांसल था। मेरे हर जगह उभड़ते हुए मांसपेशियों के निर्माण के लिए मेरे पास एक बुलवर्कर था ।

मुझे बड़े, मजबूत पुरुषों के साथ हाथ मिलाने और फिर उनके चेहरे को देखने में खुशी होती थी। मैं उनके हाथ को इतनी ज़ोर से निचोड़ता कि उस व्यक्ति का चेहरा दर्द से चौंक जाता, लेकिन किसी को अपनी तकलीफ़ दिखाने के लिए कुछ ज़्यादा ही घमंडी था।

हर दिन मैं अपने जापानी प्रशिक्षक के साथ युद्ध कला का अभ्यास करता, और सुबह-सुबह कठोर प्रशिक्षण करता। मैंने अपने दिमाग को प्रशिक्षित करने के लिए कठिन अध्ययन किया, ख़ास गणित पर काम करता, जो मेरा सबसे अच्छा विषय था और केवल गणित में मैं अच्छा था। मैंने इसे मानसिक अनुशासन के रूप में लिया। इसलिए मेरा पूरा जीवन मेरी सैन्य महत्वाकांक्षा पर केंद्रित था। मैंने इसके बारे में सिर्फ सपना नहीं देखा, लेकिन लगातार व्यवस्थित और अथक रूप से इसकी ओर काम करता रहा। मैंने, मौत के सब डर को दूर करने के लिए अपनी सोच को भी विकसित किया।

लेकिन जब मैं परमेश्वर के पास आया, तो इन सभी स्वार्थी महत्वाकांक्षाओं को जाना था। यह कितना संघर्ष का विषय था! मुझे आश्चर्य है कि कुछ लोग इतनी आसानी से परमेश्वर के पास आ सकते हैं। मैंने लड़ाई की और संघर्ष किया, और अंत में परमेश्वर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया, उनसे यह कहते हुए, “मुझे पता है कि मेरे पास दो परस्पर विरोधी जीवन नहीं हो सकते हैं, दुविधा में नहीं रह सकता हूँ। मैं जानता हूँ कि अगर मैं अपनी पुरानी सोच को ईसाई जीवन में लाऊँगा तो मैं ईसाई नहीं बन सकता।“

अब आपकी समस्या मेरी समस्या से अलग हो सकता है। आप सांसारिक शोभा नहीं चाहते होंगे। पैसों से प्यार, शायद आपकी समस्या है। मैं खुद पैसे में खास दिलचस्पी नहीं रखता था। मुझे नहीं लगता कि किसी भी सच्चे सैनिक को पैसों में दिलचस्पी है। अगर किसी को पैसों की दिलचस्पी है, तो वह अच्छा सैनिक नहीं हो सकता। एक सच्चा सैनिक अपनी सैन्य महत्वाकांक्षाओं प्रति प्रतिबद्ध है, इसलिए पैसों में उसे दिलचस्पी नहीं होती है। लेकिन कई ईसाई पैसों से प्यार करते हैं। जब तक आप पैसों के इस प्यार को त्याग नहीं देते, तब तक आप एक सच्चे ईसाई नहीं हो सकते, क्योंकि यीशु कहते हैं, "आप परमेश्वर और धन की सेवा नहीं कर सकते" (मत्ती ६:२४)। कई ईसाई दोनों की सेवा करने की कोशिश करते हैं, और वे इसे एक आध्यात्मिक लबादे के नीचे छिपाकर, इस बात को सही ठहराते हैं। लेकिन अंत में, आप केवल खुद को ही धोखा देंगे।

बपतिस्मा, मृत्यु को दर्शाता है। जब तक पुराना गुजर नहीं जाता, आप पुनरुत्थान के जीवन का अनुभव नहीं कर सकते, "जो मर गया है, वह पाप से मुक्त हो जाता है" (रोमियों ६:७)। शायद आप बपतिस्मे पर मरने से डरते हैं। मौत एकलौता विषय है जो मुझे कभी नहीं डराता है। अगर मुझे मरना है, तो ऐसा होने दो। यदि आध्यात्मिक तल पर मृत्यु ही पुराने जीवन को समाप्त करने का मार्ग है, तो ऐसा होने दो। कई ईसाई पूरी तरह से समर्पित नहीं हैं, क्योंकि वे पुराने जीवन को छोड़ना नहीं चाहते हैं। मृत्यु तब तक नहीं हो सकता जब तक परमेश्वर के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता नहीं हो।

जब हम चीन के लोग ईसाई बने, तो हमारा आदर्श वाक्य था, "मृत्यु तक परमेश्वर के प्रति वफादार"। यह संपूर्ण प्रतिबद्धता थी। इसी तरह जब एक रोम का सैनिक निष्ठा की सैन्य शपथ लेता है, तो वह न केवल सम्राट के प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा करता है, वह अपनी शपथ को मृत्यु तक वफादार के अर्थ में समझता है। प्रत्येक ईसाई को यह समझना चाहिए कि बपतिस्मा में निष्ठा की उसकी प्रतिज्ञा, परमेश्वर प्रति मृत्यु तक वफादारी की प्रतिज्ञा है, परमेश्वर प्रति अंत तक विश्वस्तता का वादा और मसीह के कदमों में चलने की प्रतिज्ञा है।

मौत हमेशा संपूर्ण होता है। आप आधे मरे नहीं हो सकते। यदि आप आधे मरे हैं, तो आप वास्तव में मर नहीं गए हैं। चूंकि बहुत से ईसाई आधे मरे हुए हैं, वे केवल आधे जीवित हैं। उस तरह का ईसाई जीवन जीने लायक नहीं है। क्या आपने किसी को आधा मरा और आधा जिंदा देखा है? वह दर्द में कराहते हुए फर्श पर पड़ा है, और इतना कमज़ोर है कि उठ नहीं सकता। क्या यह ईसाई जीवन है?

यदि आप केवल आधी दूरी तक मरने का फैसला करते हैं, तो इस पूरे मामले को भूल जाइए और बस पूरा गैर-ईसाई बन जाइए और दुनिया जो कुछ आपको पेश करता है उसमें भीगिए। आधे मरे हुए ईसाई होने में कोई मतलब नहीं है। यह एक मनहूस स्थिति है। बस दुनिया में बाहर जाओ, अपने आप को पाप में पूरा भिगो दो, उसके साथ मरो, और अनन्त सजा स्वीकार करो। लेकिन आप आधे-आधे जीवन मत जीओ, या अपने पैरों को खींचते हुए कलीसिया में नहीं जाना, जो आपके लिए या फिर कलीसिया के लिए भी, अच्छा नहीं होगा।

मैंने बार-बार निवेदन किया है कि यदि यह आपके जीने का तरीका है, तो समझदार बात यह होगा कि आप ईसाई बनने से रुक जाएँ। न यहाँ, न वहाँ रहना, ईसाई जीवन को संघर्ष के साथ जीना और हर समय असफल रहना, इन सब में क्या मतलब है? आप खुद से पूछेंगे, “जीत कहाँ है? मुझे लगा कि मैं स्वतंत्रता का अनुभव करने जा रहा हूँ, लेकिन मैं हमेशा हार गया हूँ।“ आप के लिए ठीक होगा कि आप डांस(नाच) हॉल में जाएँ और आनंद की सीमा तक जीवन जीएँ। यदि आप शराब पीना पसंद करते हैं, तो आनंद की सीमा तक पीएँ। खाओ-पियो क्योंकि तुम कल मरने वाले हो!

आप किस तरह के ईसाई हैं? यदि आप न तो यहाँ हैं और न वहाँ, या यदि आप ईसाई जीवन को कठिन और दुखित पाते हैं, तो इसे भूल जाओ! दुनिया में वापस जाओ और पृथ्वी पर अपना बचा हुआ समय का आनंद लो। फिर अनंत परिणामों की प्रतीक्षा करो।

या सबसे अच्छा, जीवन के पुराने तरीकों प्रति मरो! हमेशा हमेशा के लिए दुनिया के प्यार प्रति मरो! दुनिया से रिश्ता समाप्त करें और ईसाई जीवन का आनंद लें! कितने ईसाई वास्तव में ईसाई जीवन का आनंद लेते हैं? जब मैं आज ईसाइयों को देखता हूँ, तो मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है। लेकिन सत्य यह है, कि तृप्त और आनंदपूर्ण है सच्चा ईसाई जीवन! यह एक सख़्त जीवन हो सकता है, जैसे सैनिक का जीवन। एक सैनिक लड़ाई के लिए जाता है, जख्म और घाव के निशान पाता है, लेकिन इसमें महिमा है। सेना में सैनिक क्यों भर्ती होते हैं? एक पोषित कारण वास्ते लड़ने के लिए, और राजा के लिए, जिनसे वे प्यार करते हैं।

रोम के सैनिक, संख्या में कम, घिरे हुए या घायल होने पर भी, खुद को शत्रु के हवाले करने से इंकार कर देते हैं। वे अपनी निष्ठा से बंधे रहते हैं। वे अंतिम आदमी तक खुद को शत्रु के हवाले करने से इनकार करते हैं, और मृत्यु तक विजयी और प्रफुल्लित रहते हैं। इसी तरह कुछ साम्यवादी सैनिक, मशीनगन के आक्रमण और गोलियों के छिड़काव बीच भी आगे बढ़े हैं। यहाँ तक ​​कि वे अपने सेनापति से शहादत के सौभाग्य की याचना करते थे।

हम सोच सकते हैं कि वे पागल हैं, लेकिन वास्तव में उनके पास एक महान दर्शन है जिसके लिए वे जीने और मरने के लिए तैयार हैं। लेकिन हम मसीहियों को परमेश्वर ने और भी शानदार दर्शन दिया है। अगर कम्युनिस्ट एक दर्शन के लिए मरने को तैयार हैं, तो हम? मैं एक सैन्य दर्शन और आदर्श के लिए मरने के लिए तैयार था, लेकिन अब परमेश्वर की सच्चाई का पता लगने के बाद अपनी मूर्खता देखता हूँ । मेरे पास अब परमेश्वर हैं, न कि केवल एक दर्शन या एक आदर्श। मुझे परमेश्वर से, जीने के लिए एक नया जीवन मिला है और अगर परमेश्वर की अनुमति है, तो उनके लिए मर भी सकता हूँ।

बपतिस्मा, पुराने जीवन के पुराने तरीकों प्रति मरने का एक प्रतिबद्धता है ताकि हम पाप से मुक्त हो सकें और परमेश्वर की सेवा प्रभावी ढंग से कर सकें। ईसाई जीवन का आनंद लीजिए! यदि आप इसका आनंद नहीं लेते हैं, तो ईसाई होने का क्या मतलब है? क्या हम खुद को यातना देना पसंद करते हैं? कुछ लोग, कीलों के बिस्तर पर सोना पसंद कर सकते हैं, लेकिन मैं नहीं! अगर मुझे कुछ सच्चाई दिखता है, तो मैं जी जान से उसका पीछा करूँगा। अगर यह सच्चाई नहीं है, तो इसे भूल जाओ!

सारांश में: सबसे पहले, बपतिस्मा एक अच्छे विवेक से परमेश्वर प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा है। दूसरा, हम बपतिस्मा में मसीह के साथ एकजुट होते हैं। तीसरा, हम बपतिस्मा में मसीह के शरीर में शामिल होते हैं। चौथा, बपतिस्मा में हम पुराने जीवन के प्रति मर जाते हैं, ताकि हम अपने प्रभु यीशु मसीह के साथ नया पुनरुत्थान का जीवन पा सकें।


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